Thursday, July 05, 2012

दोहा छन्द


संस्कृत में अनुष्टुप, प्राकृत में गाथा तथा अपभ्रंश में दोहा छन्द अत्यधिक लोकप्रिय है। हिन्दी साहित्य में भी दोहा छन्द को ही सबसे अधिक अपनाया गया है।
हिन्दी को दोहा छन्द अपभ्रंश से मिला है, दोहा उत्तरकालीन अपभ्रंश का प्रमुख छन्द है। स्वयंभू के ‘पउम चरिय’ में दोहों का प्रयोग हुआ है। दोहे का सबसे पहले प्रयोग सिद्ध कवि सरहपा ( 9 वीं शताब्दी का प्रारम्भ) ने किया।
दोहा मुक्तक काव्य का प्रधान छन्द है। यह मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के आदि में जगण ( लघु, गुरु, लघु ) नहीं होना चाहिए। दोहे के अन्त में लघु होता है। दोहा लोकसाहित्य का सबसे सरलतम छन्द है जिसे साहित्य में यश मिला।


-डा० जगदीश व्योम

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