Sunday, December 11, 2005

मानोशी चटर्जी

डॉ॰ जगदीश व्योम द्वारा बनाये गये केन्द्रीय विद्यालय प्र.का.का. होशंगाबाद के जालघर
को देखकर मुझे अपना केन्द्रीय विद्यालय याद आ गया। 15 दिसम्बर 2005 को केन्द्रीय विद्यालय संगठन का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, इस अवसर पर मैं अपनी शुभकामनाएँ और बधाई समस्त केन्द्रीय विद्यालय संगठन परिवार को प्रेषित करती हूँ।
-मानोशी, कनाडा

प्रिय केन्द्रीय विद्यालय के साथियों !केन्द्रीय विद्यालय--भारत ही नहीं, भारत से दूर भी अपने विद्यार्थियों को सही राह दिखाता आगे बढ रहा है। हम सब बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें इस महान शिक्षा संस्थान में खुद को निखारने का मौका मिला। मैं केन्द्रीय विद्यालय की छात्रा रही हूं। कक्षा 1 से कक्षा 12 वीं तक मेरी शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय संख्या -1 बालको, कोरबा छत्तीसगढ में हुई। केन्द्रीय विद्यालय ने मुझे गढा है। आज मैं जो भी हूं, जितना भी मैं ने अब तक के जीवन में पाया है, उसका एक बहुत बडा श्रेय मैं इसी विद्यालय को दूंगी। केन्द्रीय विद्यालय सिर्फ़ पढाई लिखाई ही नहीं बल्कि अपने छात्रों की हर छुपी प्रतिभा को उभार कर उन्हें निखारने में मदद करता है। जीवन का कोई क्षेत्र हो, कितनी भी कठिन राह हो, केन्द्रीय विद्यालय पहले से ही अपने छात्र में वो सारी खूबियां भर देता है जो उसे जीवन की राह पर चलने में मदद करती हैं।
सी.सी.ए कार्यक्रम द्वारा यहां पढ रहे विद्यार्थी की न सिर्फ़ पाठ्येतर प्रतिभायें उजागर होती हैं बल्कि, मंच पर आकर श्रोताओं को सामना करने का साहस, खुद को व्यक्त करने की क्षमता भी विकसित होती है। राष्ट्रभाषा का स्थान रखने वाली हमारी भाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार, इसकी उन्नति और इसे देश के अहिन्दीभाषी क्षेत्रों में भी बोलचाल की भाषा बनाने में केन्द्रीय विद्यालय का बहुत बडा हाथ रहा है।
सहशिक्षा के खुले वातावरण में बडे हो रहे बच्चों के मानसिक विकास और संतुलित व्यवहार को संवारने में इस विद्यालय की हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अगर मैं पीछे मुड कर देखूं तो इस विद्यालय के साथ मेरी जाने कितनी यादें जुडी हुई हैं मगर अभी यहां अपनी विद्यालय से संबंधित कुछ बातें आप सब के साथ बांटना चाहूंगी।
कविता लिखने और गाने का शौक मुझे बचपन से ही रहा है। मगर इस शौक को बढाने और इसे पहचान दिलाने की कोशिश मेरे विद्यालय ने ही की थी सबसे पहले। मेरे स्कूल में हर सुबह की प्रार्थना सभा का आयोजन, हर सप्ताह एक हाउस का दायित्व होता था। मैं शिवाजी हाउस में थी। हमारे विद्यालय में समाचार/आज का विचार आदि के साथ ही हर दिन एक विशेष कार्यक्रम होता था। अगर सोमवार को समूह गान, तो मंगल को हाउस के किसी सदस्य द्वारा कविता पाठ, तो बुधवार को किसी खास विषय पर किसी छात्र द्वारा भाषण इत्यादि। उन सुबह के कार्यक्रमों में भाग लेने से न सिर्फ़ मुझमें सही तरीके से बोलने, दर्शकों का सामना करने की हिम्मत आई बल्कि आत्मविश्वास भी बहुत बढा। वो उम्र कुछ ऐसी थी कि देश या समाज की अच्छाइयां छोड, बुराइयां ज़्यादा दिखती थीं और उन बुराइयों को कविताओं के ज़रिये कह कर लगता था कि बहुत बडी बात कह दी। स्वाभाविक है मेरी कविताओं में भी उन्हीं बुराइयों का ज़िक्र ज़्यादा होता था। उन कविताओं को मैं उन सभाओं में या अन्य कार्यक्रमों के दौरान पढा करती थी। उन्हीं दिनों की बात है जब मुझे हमारे प्राचार्य श्री जे पी राइ ने समझाया था कि कविता में हमें कोशिश करनी चाहिये कि कोई उत्साहवर्धक बात हो, कोई पोसिटिव बात हो क्योंकि ये कविता किसी का मार्गदर्शन करने में, किसी के विचारों को सही रास्ता दिलाने में सक्षम होनी चाहिये। बुराइयां देखना बहुत आसान है मगर सुन्दरता, अच्छाई को देख कर, उसका अहसास होना व अपनी कृतियों में उन भावों का प्रतिवर्तन बहुत ज़रूरी है। केन्द्रीय विद्यालय संगठन की पत्रिका में ही मेरी कविता पहली बार छपी थी और उसके लिये मुझे २५ रुपये का पुरस्कार मिला था। कविता तो अब पूरी याद नहीं, मगर आखिरी की पंक्तियां अभी भी याद हैं।
"कहें भले ही संतान तेरेवे नहीं तेरे बल्कि विदेशी चेरे पर इक दिन वे लौटेंगे घर को तेरेक्यों की मां तो बस एक यही हैऔर यही दुनिया की रीत रही है"
कक्षा बारहवीं में मुझे युवा संसद ( यूथ पार्लियामेंट) में भाग लेने का मौका मिला। भुवनेश्वर में ये रीजनल स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी और स्पीकर की भूमिका के लिये द्वितीय पुरस्कार मिला था मुझे। वो अनुभव भी अपने में एक था। उस प्रतियोगिता में भाग लेने से मुझे न सिर्फ़ संसद के सभी कार्यवाहियों की आद्योपांत जानकारी मिली बल्कि जीवन की राह में एक और मील का पत्थर साबित हुआ ये अनुभव। आज भी मेरे रेस्युमे में इस बात का उल्लेख करती हूं मैं। यही नहीं पाठयक्रम के तहत साइन्स के विभिन्न प्रोजेक्ट तैयार करना और उनको स्कूल के साइन्स एक्ज़िबिशन के दौरान प्रदर्शित करना भी एक रोमांचक अनुभव हुआ करता था। न सिर्फ़ हिन्दी या अंग्रेज़ी बल्कि हर क्षेत्र में पारंगत कर देता है ये विद्यालय। केन्द्रीय विद्यालय का पाठ्यक्रम विद्यार्थी को देश विदेश में समान रूप से अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढने में पूरी तरह मदद करता है। मैने भारत में ही नहीं बल्कि साउदी अरब से लेकर कनाडा में एक शिक्षिका के रूप में काम किया है मगर मुझे कहीं कोई परेशानी नहीं हुई। मैं इसका एक बहुत बडा श्रेय केन्द्रीय विद्यालय के पाठ्यक्रम, और उसके अपने विद्यार्थियों को तैयार करने की सही कोशिश को देना चाहूंगी। ये ज़रूरी नहीं कि हर विद्यार्थी अपनी कक्षा में प्रथम स्थान लाये मगर इस विद्यालय की यही खूबी है कि वो छात्रों में उनके छुपे गुणों को पहचान कर उन्हें तराशने और सही दिशा दिखाने में मदद करता है। और ज़्यादा समय न लेते हुये मैं यही कहना चाहूंगी कि, हम सब बहुत भाग्यशाली हैं जो केन्द्रीय विद्यालय में पढे हैं या पढ रहे हैं। अभी शायद आप लोगों को इसका अहसास उतना न हो मगर आगे चल कर मेरी इस बात का मतलब आपको सही मायनों में समझ में आयेगा, मुझे इसका यकीन है। आप सब को मेरी तरफ़ से एक सुंदर भविष्य के लिये शुभकामनायें ।
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-मानोशी चटर्जी
British Columbia
canada

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